NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी | NCERT Question and Answer for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 Kallu Kumhar ki Unakoti

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी is part of NCERT Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 3 कल्लू कुम्हार की उनाकोटी.

उत्तर -1’उना’ का मतलब है एक करोड़ में एक कम. एक दंतकथा के अनुसार, यहाँ भगवान शिव की एक करोड़ मूर्तियों में से एक कम है. इसी वजह से इसका नाम ‘उनकोटी’ पड़ा. 😊

उत्तर -2 उनाकोटी में पहाड़ों को भीतर से काटकर विशाल आधार मूर्तियाँ गढ़ी गई हैं। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने के लिए शिव को सहमत किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में समेट लें और फिर धीरे-धीरे प्रवाहित करें। यहाँ शिव का चेहरा एक विशाल चट्टान पर उकेरा गया है, जबकि उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों तक फैली हुई हैं। इस स्थल पर एक जल प्रपात निरंतर बहता है, जिसे गंगा जल के समान पवित्र माना जाता है। 😊

उत्तर -3उनाकोटी में हजारों मूर्तियाँ मौजूद हैं, लेकिन उनके निर्माता की पहचान अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि इन मूर्तियों को कल्लू कुम्हार ने बनाया था, जो माता पार्वती का भक्त था।

कल्लू शिव-पार्वती के साथ कैलाश पर्वत जाना चाहता था। जब माता पार्वती ने आग्रह किया, तो शिव ने शर्त रखी कि उसे एक रात में शिव की एक करोड़ (कोटी) मूर्तियाँ बनानी होंगी।

कल्लू ने पूरी रात मेहनत की, लेकिन सुबह मूर्तियों की संख्या एक करोड़ से कम निकली। ‘उना’ का अर्थ ही है एक करोड़ में एक कम. इसी युक्ति से शिव ने कल्लू से पीछा छुड़ाने का बहाना बना लिया और उसे उसकी मूर्तियों के साथ उनाकोटी में ही छोड़कर आगे बढ़ गए। इस तरह कल्लू कुम्हार का नाम इस स्थान से जुड़ गया। 😊

उत्तर -4लेखक त्रिपुरा में शूटिंग में व्यस्त था, जहाँ उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सी.आर.पी.एफ. के जवानों ने संभाल रखी थी। इन सुरक्षाकर्मियों ने लेखक का ध्यान निचली पहाड़ियों पर रखे दो पत्थरों की ओर आकर्षित किया।

जब उन्होंने बताया कि दो दिन पहले इसी स्थान पर एक सैनिक को विद्रोहियों ने मार दिया था, तो यह सुनकर लेखक के रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड़ गई। इस घटना ने उसे गहराई से प्रभावित किया। 😊

उत्तर -5त्रिपुरा एक बहुधार्मिक समाज का उदाहरण है, जहाँ अलग-अलग जगहों से लोग आकर बसे हैं। यहाँ 19 अनुसूचित जनजातियाँ रहती हैं और विश्व के चार प्रमुख धर्मों—हिंदू, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई—का प्रतिनिधित्व होता है।

राज्य में बौद्ध धर्म भी काफी प्रचलित है, और अगरतला के बाहरी हिस्से में एक सुंदर बौद्ध मंदिर स्थित है। इसके अलावा, यहाँ भगवान शिव की उपासना भी की जाती है, जो धार्मिक विविधता को दर्शाता है। 😊

उत्तर -6टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय लोकगायक हेमंत कुमार जमातिया और समाज सेविका मंजू ऋषिदास से हुआ.

  • हेमंत कुमार जमातिया एक प्रसिद्ध लोकगायक थे, जिन्हें 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया था। वे पहले पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे और बाद में त्रिपुरा के जिला परिषद के सदस्य बने। उनके गीतों में क्षेत्र की शांति और खुशहाली की झलक मिलती थी.
  • मंजू ऋषिदास नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व करती थीं। उन्होंने अपने वार्ड में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने, नल का पानी पहुँचाने और गलियों में ईंटें बिछवाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए.

इन दोनों हस्तियों ने समाज कल्याण में अहम योगदान दिया और अपने क्षेत्र की उन्नति के लिए कार्य किया। 😊

उत्तर -7कैलासशहर के जिलाधिकारी ने लेखक को आलू की खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यहाँ अब टी.पी.एस. (True Potato Seeds) से आलू की खेती की जाती है।

  • पारंपरिक आलू की खेती में दो मीट्रिक टन बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती थी, जबकि टी.पी.एस. की मात्र 100 ग्राम बीज ही एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है.
  • यह विधि सस्ती और अधिक उत्पादक है, जिससे किसान इसे अपनाने लगे हैं.
  • त्रिपुरा अब टी.पी.एस. का निर्यात पड़ोसी राज्यों और अन्य देशों को भी कर रहा है.

इस नई तकनीक से आलू उत्पादन में वृद्धि हुई है और किसानों को अधिक लाभ मिल रहा है। 😊

उत्तर -8त्रिपुरा में कई घरेलू उद्योग विकसित हुए हैं, जो स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। यहाँ अगरबत्ती निर्माण, बाँस के उत्पाद, हस्तशिल्प, और आलू की खेती प्रमुख घरेलू उद्योगों में शामिल हैं।

  • अगरबत्ती उद्योग: त्रिपुरा में बाँस से पतली सींकें तैयार की जाती हैं, जिन्हें अगरबत्ती बनाने के लिए कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है।
  • हस्तशिल्प: यहाँ के लोग बाँस और लकड़ी से खिलौने, टोकरी, और सजावटी सामान बनाते हैं।
  • आलू की खेती: यहाँ टी.पी.एस. (True Potato Seeds) तकनीक से आलू की खेती होती है, जिससे उत्पादन बढ़ा है।
  • माचिस और साबुन उद्योग: त्रिपुरा में माचिस, साबुन, प्लास्टिक, स्टील, और लकड़ी के छोटे घरेलू उद्योग भी चलते हैं।

इसके अलावा, भारत में अन्य घरेलू उद्योगों में हथकरघा, जूट उद्योग, मसाला उत्पादन, और डेयरी उद्योग शामिल हैं। ये उद्योग स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ाने और आर्थिक विकास में योगदान देते हैं। 😊

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