NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 दुःख का अधिकार

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 दुःख का अधिकार

उत्तर -1 किसी व्यक्ति की पोशाक से हमें उसकी समाज में स्थिति और अधिकारों का अंदाजा हो सकता है। इससे यह भी पता चल सकता है कि वह अमीर है या गरीब।

उत्तर -2 उसके बेटे की मृत्यु के कारण कोई उससे खरबूजे नहीं खरीद रहा था।

उत्तर -3 स्त्री को देखकर लेखक का हृदय व्यथित हो उठा और उसके प्रति गहरी संवेदना जागृत हुई।

उत्तर -4 उस स्त्री का बेटा एक दिन मुँह – अँधेरे खेत में से बेलों  से खरबूज़े चुन रहा था कि गिली मिट्टी की शीतलता में आराम करते हुए सांप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उसके बेटे को डँस लिया।ओझा के झाड़- फूँक आदि का उस पर कोई असर न हुआ और उसका देहांत हो गया।

उत्तर -5 बुढ़िया का बेटा अब नहीं रहा, जिससे उसके उधार चुकाने की संभावना बहुत कम थी। इसी कारण कोई उसे उधार देने के लिए तैयार नहीं था।

उत्तर -6 मनुष्य के जीवन में पोशाक का अत्यधिक महत्त्व है। यह उसके समाज में दर्जा और अधिकार को दर्शाती है। पोशाक के आधार पर व्यक्ति की सामाजिक श्रेणी निर्धारित होती है। कई बार, आकर्षक और उपयुक्त पोशाक भाग्य के बंद दरवाजे खोलने में सहायक होती है और सम्मान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

उत्तर -7 जब हमें किसी दुःखी व्यक्ति को सांत्वना देनी होती है, लेकिन उसे छोटा समझकर हम बातचीत करने में हिचकिचाते हैं, तो यह दूरी और संकोच पैदा कर सकता है। यदि हमारी पोशाक भी इस झिझक को बढ़ा देती है और हमें सहज रूप से उसके पास जाने से रोकती है, तो यही पोशाक हमारे भावनात्मक जुड़ाव में बाधा बन जाती है।

उत्तर -8 वह स्त्री सिर को घुटनों पर टिकाए फफक-फफक कर रो रही थी। उसके बेटे की मृत्यु के कारण लोग उससे खरबूजे खरीदने से कतरा रहे थे और उसे बुरा-भला कह रहे थे। उसकी दशा देखकर लेखक का मन व्यथित हो उठा, और उनके भीतर सांत्वना देने की भावना जागृत हुई। लेकिन वह स्त्री के दुःख का कारण नहीं समझ पाए, क्योंकि उनकी पोशाक उनके और उस स्त्री के बीच एक अदृश्य दीवार बन गई थी।

उत्तर -9 भगवाना के पास शहर के समीप डेढ़ बीघा ज़मीन थी, जहाँ वह खरबूजे की खेती करता था। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए, वह न केवल अपनी फसल उगाता था, बल्कि उसे बाज़ार तक स्वयं ले जाकर सौदे के पास बैठकर बिक्री भी करता था।

उत्तर -10 बुढ़िया अपने बेटे के निधन का शोक मनाना चाहती थी, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। धन की कमी उसकी सबसे बड़ी बाधा थी—भगवाना के बच्चे भूख से तड़प रहे थे, और उसकी बहू बीमारी से जूझ रही थी। यदि उसके पास पर्याप्त धन होता, तो वह कभी भी सूतक में खरबूजे बेचने के लिए बाज़ार न जाती।

उत्तर -11 लेखक के घर से निकट में एक संभ्रांत महिला रहती थी। उसके बेटे का भी देहांत हो गया था और बुढ़िया के बेटे का भी देहांत हो गया था ,लेकिन दोनों के शोक मनाने का तरीका अलग – अलग था। धन की कमी की वजह से बेटे के देहांत के अगले ही दिन बुढ़िया को बाज़ार में खरबूजे बेचने आना पड़ता है। वह घर बैठकर रो नहीं सकती थी। मानो उसे अपना दुःख मनाने का हक़ ही न था। पड़ोस के लोग उसकी मजबूरी को अनदेखा कर, उस बुढ़िया को बुरा – भला कहते हैं। जबकि संभ्रांत महिला के पास बहुत समय था। वह ढाई महीने से बिस्तर पर थी, डॉक्टर हमेशा सिरहाने बैठा रहता था। लेखक दोनों की तुलना करना चाहता है, इसलिए उसे संभ्रांत महिला की याद आयी।

निम्नलिखित प्रशनो के उत्तर (50 -60 )शब्दों में लिखिए –

उत्तर -12बेटे के देहांत के अगले ही दिन बुढ़िया को मजबूरी में बाज़ार आकर खरबूजे बेचने पड़े, लेकिन उसकी परिस्थिति को समझने के बजाय लोग उसे बुरा-भला कहने लगे। कोई घृणा से देखता, कोई उसकी नीयत पर सवाल उठाता। कुछ लोग ताने मारते कि वह रोटी के टुकड़े के लिए सबकुछ त्याग चुकी है, तो कुछ कहते कि उसे रिश्तों की कोई परवाह नहीं। एक दुकानदार ने आरोप लगाया कि वह धर्म और ईमान को बिगाड़कर अधर्म फैला रही है। उसकी मजबूरी को नज़रअंदाज़ कर, लोग उसके खरबूजे तक छूने से कतराने लगे।

उतर -13 पास-पड़ोस की दुकानों से पूछताछ करने पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का एक 23 वर्षीय जवान बेटा था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती भी रहते थे। वह शहर के पास डेढ़ बीघा ज़मीन पर खेती कर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। खरबूजों की डलियाँ बाज़ार तक पहुँचाने के बाद, कभी वह खुद सौदे के पास बैठता, तो कभी उसकी माँ उसकी जगह लेती।

परसों वह अंधेरे में खेत में बेलों से खरबूजे चुन रहा था, जब अचानक उसका पैर गीली मिट्टी में पड़े एक सांप पर चला गया। सांप ने उसे डंस लिया, और ओझा की झाड़-फूंक भी कोई असर नहीं दिखा सकी। अंततः, इस विषैले दंश के कारण उसका दुखद निधन हो गया।

उत्तर -14 लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने वह सभी उपाय किए जो वह कर सकती थी। वह परेशान सी हो गयी। झाड़ – फूँक करवाने के लिए ओझा को ले आयी , सांप का ज़हर निकल जाए इसलिए नाग देवता की भी पूजा की , घर में जितना आटा अनाज था वह ओझा को दे दिया लेकिन दुर्भाग्य से बेटे को नहीं बचा सकी।

उत्तर -15 लेखक ने पुत्र-वियोगिनी बुढ़िया के दुःख को समझने के लिए पिछले वर्ष अपने पड़ोस में हुई एक घटना को याद किया। वहाँ एक संभ्रांत महिला थी, जो अपने पुत्र की मृत्यु के बाद ढाई महीने तक पलंग से उठ नहीं सकी। शोक के कारण वह हर पंद्रह मिनट में बेहोश हो जाती थी। उसकी देखभाल के लिए दो-दो डॉक्टर हमेशा पास मौजूद रहते थे। पूरे शहर के लोग उसके पुत्र-शोक से व्यथित हो उठे थे और उसकी पीड़ा को गहराई से महसूस कर रहे थे।

उत्तर -16 इस पाठ का शीर्षक ‘दुःख का अधिकार’ पूरी तरह सार्थक है, क्योंकि यह सामाजिक भेदभाव और आर्थिक असमानता के कारण उत्पन्न एक गहरी विडंबना को उजागर करता है।

पाठ में बुढ़िया के बेटे की मृत्यु के बाद उसकी असहाय स्थिति को दिखाया गया है। जहाँ एक संभ्रांत महिला अपने पुत्र-वियोग में खुलकर शोक व्यक्त कर सकती थी, वहीं आर्थिक रूप से कमजोर बुढ़िया को अपने दुःख को दबाकर जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसे बाजार में खरबूजे बेचने आना पड़ा, क्योंकि उसके पास बैठकर शोक मनाने का विकल्प नहीं था। समाज ने उसकी मजबूरी को नज़रअंदाज़ कर उसे कठोर शब्दों से अपमानित किया, जबकि संभ्रांत महिला को पूरा सामाजिक समर्थन मिला।

इस विरोधाभास के माध्यम से लेखक यह दर्शाता है कि दुःख व्यक्त करने का अधिकार सभी को समान रूप से नहीं मिलता। आर्थिक संपन्नता और सामाजिक प्रतिष्ठा से यह तय होता है कि कोई व्यक्ति अपने दुःख को कैसे प्रकट कर सकता है। यही कारण है कि ‘दुःख का अधिकार’ शीर्षक पाठ की मूल भावना को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है और समाज में व्याप्त इस गहरी असमानता पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है।

उत्तर -17

यह कहानी समाज में व्याप्त अंधविश्वास और ऊँच-नीच के भेदभाव को उजागर करती है। इसमें अमीरों के अमानवीय व्यवहार और गरीबों की विवशता को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। मनुष्य की वेशभूषा अक्सर उसे विभिन्न सामाजिक वर्गों में विभाजित कर देती है, और यही पोशाक समाज में उसकी स्थिति और पहचान तय करती है।

वेशभूषा कई अवसरों के द्वार खोलती है, लेकिन कुछ परिस्थितियाँ ऐसी आती हैं जब हम समाज की निम्न वर्ग की वास्तविकता को समझना चाहते हैं। तब यही पोशाक हमारे लिए एक अवरोध बन जाती है और हमें झुकने से रोकती है। जैसे हवा की लहरें एक कटी हुई पतंग को तुरंत जमीन पर गिरने नहीं देतीं, उसी तरह विभिन्न परिस्थितियों में हमारी वेशभूषा हमें सहजता से झुकने या समाज के निचले तबके के अनुभव को आत्मसात करने से रोक देती है।

इस तरह, यह कहानी सामाजिक संरचना और वेशभूषा के प्रभाव को गहराई से उजागर करती है।

उत्तर -18 समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को नियमों, कानूनों और परंपराओं का पालन करना पड़ता है। जीवन के मूल्यों को दैनिक आवश्यकताओं से अधिक महत्व दिया जाता है। यह कथन गरीबों की कठिन परिस्थितियों पर एक तीखा व्यंग्य है। उन्हें अपने पेट भरने के लिए हर दिन काम पर जाना पड़ता है, चाहे घर में कोई दुखद घटना ही क्यों न घटी हो। लेकिन समाज उनके संघर्ष को समझने के बजाय कठोर दृष्टिकोण अपनाता है—कुछ लोग बिना सहानुभूति के कहते हैं कि इनके लिए रोटी ही ईमान है, और रिश्तों का कोई विशेष महत्व नहीं।

यह विचार इस सच्चाई को उजागर करता है कि गरीबों को अपनी भावनाओं और दुख को पीछे छोड़कर पहले अपनी आजीविका की चिंता करनी पड़ती है। यही सामाजिक व्यवस्था उनकी मजबूरी को समझने के बजाय उन्हें कठोर टिप्पणियों का सामना करने पर मजबूर कर देती है।

उत्तर -19 यह तंज अमीरी पर है , क्योंकि समाज में अमीरों के पास शोक मनाने का समय और सुविधा दोनों ही है। इसी कारण वह शोक मनाने का दिखावा भी कर पाता है उसे अपना अधिकार समझता है। शोक करने , दुख मनाने की सहूलियत भी चाहिए। दुख में मातम हर व्यक्ति मनाना चाहता है चाहे वह अमीर हो या गरीब। अंतः गरीब विवश होता है। वह रोजी रोटी कमाने की उलझन में ही लगा रहता है। उसके पास शोक मनाने का न ही वक्त होता है और न ही सुविधा। इसी तरह गरीबों को रोटी कमाने की उलझन दुख मनाने के अधिकार से वंचित रखती है।

उत्तर -20 निम्नलिखित शब्द-समूहों को पढ़ें और समझें:

(क) कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
(ख) कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
(ग) अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
(घ) संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
(ङ) अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिलाएँ, में, मैं।

ध्यान दें कि ङ्, ञ्, ण्, न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इन्हें लिखने के दो तरीके होते हैं—या तो इन अक्षरों को पूर्ण रूप में लिखा जाता है, या फिर अनुस्वार (ं) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। दोनों ही शुद्ध माने जाते हैं।

  • यदि कोई पंचमाक्षर दो बार आता है, तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता। उदाहरण: अम्मा, अन्न आदि।
  • यदि पंचमाक्षर के बाद अंतस्थ (य, र, ल, व) या ऊष्म (श, ष, स, ह) अक्षर आते हैं, तो अनुस्वार लिखा जाता है, लेकिन इसका उच्चारण पंचमाक्षरों में से किसी एक की तरह किया जाता है। उदाहरण: संशय में ‘न्’, संरचना में ‘न्’, संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ्’।

( ं ) यह अनुस्वार का चिह्न है, और ( ँ ) यह अनुनासिक का चिह्न है। इन्हें क्रमशः बिंदु और चंद्र-बिंदु भी कहा जाता है। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर होता है—

  • अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ किया जाता है।
  • अनुनासिक का प्रयोग स्वर के साथ किया जाता है।

इस प्रकार, पंचमाक्षरों और उनके प्रयोग के नियम हिंदी भाषा की शुद्धता और उच्चारण की स्पष्टता को बनाए रखते हैं।

उत्तर -21 यह रहे इन शब्दों के पर्यायवाची शब्द:

  • ईमान – सच्चाई, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी
  • बदन – शरीर, अंग, देह
  • अंदाज़ा – अनुमान, कल्पना, गणना
  • बेचैनी – व्याकुलता,अस्थिरता
  • गम – दुख, पीड़ा, विषाद
  • दर्जा – स्तर, श्रेणी, मानक
  • ज़मीन – धरती, भूमि, भूभाग
  • बरकत – कृपा, शुभता, समृद्धि

उत्तर- 22 यहां शब्द-युग्म को पुनः व्यवस्थित और स्पष्ट रूप से लिखा गया है:

  • खसम – लुगाई
  • पोता – पोती
  • झाड़ना – फूँकना
  • छन्नी – ककना
  • दुअन्नी – चवन्नी

उत्तर -23

यहाँ वाक्यांशों की व्याख्या प्रस्तुत की गई है:

  • बंद दरवाजे खोल देना – किसी कठिनाई या बाधा को समाप्त करके नए अवसर उपलब्ध कराना।
  • निर्वाह करना – किसी तरह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना, जीवनयापन करना।
  • भूख से बिलबिलाना – अत्यधिक भूख के कारण व्याकुल हो जाना या तड़पना।
  • कोई चारा न होना – किसी स्थिति में कोई विकल्प उपलब्ध न होना, मजबूर होना।
  • शोक से द्रवित हो जाना – गहरे दुख या संवेदना से अत्यधिक प्रभावित हो जाना

(क) उत्तर -24

  • छन्नी-ककना – पुराने बर्तन को साफ करने के लिए माँ ने छन्नी और ककना का उपयोग किया।
  • अढ़ाई-मास – उसने अढ़ाई-मास की मेहनत के बाद अपनी परीक्षा की तैयारी पूरी की।
  • पास-पड़ोस – हमारे पास-पड़ोस के लोग बहुत मिलनसार और मददगार हैं।
  • दुअन्नी-चवन्नी – पहले समय में बच्चों को जेबखर्च के लिए दुअन्नी-चवन्नी दी जाती थी।
  • मुँह-अँधेरे – वह मुँह-अँधेरे उठकर अपने खेतों की देखभाल करने चला जाता है।
  • झाड़ना-फूँकना – कुछ लोग अभी भी बीमारियों के इलाज के लिए झाड़ना-फूँकना में विश्वास रखते हैं।

(ख)

  • फफक-फफककर – परीक्षा में असफल होने के बाद वह फफक-फफककर रोने लगा।
  • बिलख-बिलखकर – बच्चे ने अपनी खोई हुई किताब के लिए बिलख-बिलखकर माँ से शिकायत की।
  • तड़प-तड़पकर – बिछड़ने की पीड़ा में वह तड़प-तड़पकर रोया।
  • लिपट-लिपटकर – माँ को लंबे समय बाद देखकर वह उनसे लिपट-लिपटकर रोने लगा

उत्तर -25

(क)

  1. बच्चे नींद से जागते ही भूख से तड़पने लगे।
  2. आज माँ का जन्मदिन है, इसलिए उपहार लाना अनिवार्य होगा।
  3. माँ सोहन को पढ़ाना चाहती थी, चाहे इसके लिए उसके हाथ के छन्नी-ककना ही क्यों न बेचना पड़े।

(ख)

  1. जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल मिलता है।
  2. बीमार श्याम एक बार शांत हुआ तो फिर कभी बोल नहीं सका।

व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है—यह एक विचारणीय विषय है जिस पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं।

पोशाक न केवल हमारे बाहरी रूप को प्रस्तुत करती है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, सामाजिक स्थिति और व्यक्तित्व का भी प्रतीक होती है। कई बार लोग किसी व्यक्ति के पहनावे को देखकर उसकी पृष्ठभूमि, व्यवसाय या सोच का अनुमान लगाते हैं। उदाहरण के रूप में, एक सरकारी अधिकारी की औपचारिक वेशभूषा, एक कलाकार की रचनात्मक पोशाक, या एक साधु-संत की पारंपरिक पोशाक उनकी पहचान को दर्शाती है।

हालांकि, केवल पोशाक के आधार पर व्यक्ति का सही आकलन करना उचित नहीं होता। कई बार सादे या साधारण कपड़े पहनने वाला व्यक्ति भी अत्यंत बुद्धिमान और प्रभावशाली हो सकता है, और महंगे वस्त्रों में सजे व्यक्ति के विचार एवं व्यवहार साधारण हो सकते हैं।

  • क्या पोशाक वास्तव में किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को दर्शाती है?
  • क्या हमें केवल कपड़ों के आधार पर किसी व्यक्ति का आकलन करना चाहिए?
  • आज के समाज में पोशाक की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है?

संघर्ष की छाया में उम्मीद

गाँव की मिट्टी से सना चेहरा और माथे पर चिंता की लकीरें—यह थी कमला, जो भगवाना की माँ जैसी ही एक दुखियारी थी। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा था।

कमला का पति बीमारी के चलते चल बसा, और तब से वह अपने दोनों बच्चों के लिए अकेले ही संघर्ष कर रही थी। वह दिनभर खेतों में मजदूरी करती, दूसरों के घरों में काम करती, और रात को थककर घर लौटती। उसकी आँखों में एक ही सपना था—अपने बच्चों को पढ़ाकर उन्हें अच्छा जीवन देना।

एक दिन, गाँव के विद्यालय में एक नई शिक्षक आई। उसने देखा कि कमला की बेटी गीता पढ़ाई में बेहद होशियार थी, लेकिन साधनों की कमी के कारण उसकी शिक्षा अधर में लटक रही थी। शिक्षक ने उसका दाखिला निःशुल्क करवाया और किताबें उपलब्ध कराईं।

समय बीतता गया, गीता ने मेहनत से पढ़ाई की और गाँव में एक सम्मानजनक नौकरी पाने में सफल रही। आज वह अपनी माँ के संघर्ष का मूल्य समझती थी और उसकी हर जरूरत का ध्यान रखती थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिनाइयों के बाद भी उम्मीद की किरण बनी रहती है, और संघर्ष से सफलता हासिल की जा सकती है।

कुछ सबसे विषैले साँपों में किंग कोबरा, रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर, भारतीय करैत और इंडियन कोबरा शामिल हैं. ये साँप अत्यधिक जहरीले होते हैं और इनके काटने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।





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